Add To collaction

ज़िन्दगी गुलज़ार है

२५ अप्रैल – कशफ़

आज मैंने अपनी ज़िन्दगी का सबसे अहम् फैसला किया है. शादी करने का फैसला और वो भी उस शख्स से जो चंद दिन पहले मेरे लिए सबसे ज्यादा नापसंदीदा था. कॉलेज में वो मुझे कभी किसी बात पर क़ायल नहीं कर सका, हालांकि वो हमेशा वो हमेशा फैक्ट्स के साथ बात किया करता था, मगर आज पहली दफ़ा उसकी बातों ने मुझे क़ायल किया है.

आज जब मैं सर अबरार के घर गयी, तो ना तो मुझे ये तवक्को थी कि वहाँ मेरी मुलाक़ात उससे होगी और ना ही मुझे ये अंदाज़ा था कि सर अबरार मुझसे इस मौज़ू पर बात करेंगे. हैरत का पहला झटका मुझे तब लगा, जब मुलाज़िम ने मुझे लाउंज में बैठाया और कहा कि मैं सर अबरार को बताकर आता हूँ. पहले वो मुझे हमेशा सीधा स्टडी में ले जाया करता था.

फिर थोड़ी देर बाद वो मुझे लेकर स्टडी में गया. स्टडी में दाखिल होते ही मैं जान गयी थी कि ज़ारून वहाँ है, क्योंकि कॉलेज से लेकर अब तक वो एक ही परफ्यूम इस्तेमाल करता रहा था और उस वक़्त भी स्टडी में उसी परफ्यूम की ख़ुशबू थी, लेकिन वो मुझे स्टडी में नज़र नहीं आया. और जब मैं कुर्सी पर बैठी, तो टेबल पर मुझे जो की-रिंग नज़र आया, वो उसी का था. मैं उस देखते ही पहचान गयी थे, क्योंकि जब वो मेरे ऑफिस में आया था, तो उसने यही की-रिंग मेरी मेज़ पर रख दिया था.

टेबल पर कॉफ़ी के दो कप थे. वो यकीनन वहीं था, इसलिए सर अबरार ने मुलाज़िम को हिदायत की होगी कि पहले मुझे लाउंज में बैठाये, ताकि वो ज़ारून को इधर-उधर कर सकें. फिर मैंने ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश की कि वो कहाँ हो सकता है. यक़ीनन स्टडी के साथ वाले कमरे में और बाद में मेंरा अंदाज़ा दुरुस्त साबित हुआ था. और जब सर अबरार ने उसके प्रपोजल के बारे में बात करनी शुरू की, तो मैं जान गयी कि ये सब ड्रामा क्यों हो रहा था.

मैं सर अबरार की बातों से बिल्कुल भी मुतअस्सिर (प्रभावित) नहीं हुई. मुझे उनके ख़ुलूस (सच्चाई, ईमानदारी, निष्कपटता) पर शुबहा (शक) नहीं था, मगर ये भी जानती थी कि वो ज़ारून से बहुत मुहब्बत करते हैं और सिर्फ़ उसकी ख़ातिर मुझे समझाने की कोशिश कर रहे हैं. मैं ये जानती थी कि ज़ारून हमारी बातें सुन रहा है, इसलिए मैंने बहुत वज़ा (तरीका, ढंग) अंदाज़ में उसके बारे में अपने हादिसात (घटनाचक्र, घटनाओं का सिलसिला) और ख़यालात बताये थे, लेकिन जब उसने बोलना शुरू किया, तो मैं हैरान हो गयी थी.

वो बहुत संज़ीदा था और मुझे उसकी बातों में कोई खोट नज़र नहीं आया. वो ठीक कह रहा था, ये ज़रूरी तो नहीं कि जिससे मैं शादी करूं, वो वाकई पारसा (पवित्र) हो. मैं इस कदर ख़ुशकिस्मत कहाँ हो सकती हूँ और अगर ऐसा है, तो फिर ज़ारून में  क्या बुराई है? इस दौर में फ़रिश्ता तो कोई भी नहीं होता, फिर क्या ये बेहतर नहीं है कि मैं उसकी बातों पर ऐतबार न करूं. शादी तो वैसे भी जुआं होती है. सो मैंने फ़ैसला कर लिया कि मैं जुआं ज़ारून पर खेलूंगी.

कुछ देर पहले उसका शुक्रिया अदा करने के लिए फोन आया था. शायद वो कुछ और भी कहना चाहता था, मगर पता नहीं एकदम मुझे क्यों उससे इतनी बेज़ारी होने लगी थी. मैंने फोन बंद कर दिया था. मैं उन लोगों में से नहीं हूँ, जिस पर ख़ुदा मेहरबान रहता है, इसलिए अगर ये फैलसा ग़लत साबित होता है, तब भी ये मेरी लिए शॉक नहीं होगा. मुझे आजमाइशों और मुसीबतों की आदत है. एक और सही. 

   9
3 Comments

shahil khan

20-Mar-2023 07:03 PM

nice

Reply

Radhika

09-Mar-2023 04:21 PM

Nice

Reply

Alka jain

09-Mar-2023 04:09 PM

👌👌👌

Reply